Thursday, June 24, 2010

भागलपुर जिसे कभी दुनियां ने 'प्रसिद्ध देवदास' को अपनी कलम देने वाले शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय या फिर अपनी अदाकारी और गायकी से सभी को दीवाना बना देने वाले किशोर कुमार की कर्मस्थली के रूप में जाना हो। साथ ही दादा साहब फाल्के अवार्ड विजेता अशोक कुमार 'दादा मुनि' व बीते जमाने की सुप्रसिद्ध अदाकारा देविका रानी ने भी अंग जनपद की माटी में रहकर अपने आपको जितना संवारा है, वहां किसी से भी छिपा नहीं है। अतीत के पन्नों में नाम अंकित करा चुकी इन हस्तियों की कर्मस्थली के फनकारों की निगाहें आज भी एक अदद प्रेक्षागृह की तलाश में हैं। यह बात दीगर है कि यहां दो निजी प्रेक्षागृह । लेकिन वे भी बदलते परिवेश में पीछे छूट चुके हैं। प्रेक्षागृह के अभाव में कुंठित हो रहे स्थानीय कलाकारों का दर्द साफ झलकता है।

परिधि के उदय कहते हैं कि प्रेक्षागृह नहीं होने से नई प्रतिभाएं सामने नहीं आ पाती। वे कहते हैं कि इस समस्या पर सब सरकार को कोसते हैं। लेकिन हमारा समाज भी इस मुद्दे पर कम दोषी नहीं है। एक कलाकार अपनी प्रस्तुति से संस्कृति और सभ्यता का बोध कराता है। जब हम कलाकारों की ही उपेक्षा करेंगे तो अपनी संस्कृति खुद ही नजरअंदाज हो जाएगी। महाराष्ट्र, बंगाल में कलाकारों को उचित सम्मान व पूरा मौका मिलता है। लेकिन यहां ऐसा सोचना भी गलत है।

'दिशा' के चन्द्रेश कहते हैं कि यह समस्या आज की नहीं बल्कि कई वर्षो पुरानी है। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर हम लोग करीब 12 वर्षो से संघर्षरत हैं। जनप्रतिनिधियों द्वारा कभी ध्यान नहीं देने पर चन्द्रेश कहते हैं कि सुशील मोदी, अश्रि्वनी चौबे व सैय्यद शाहनवाज हुसैन से प्रेक्षागृह बनवाने की मांग की गई। लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।

रंगकर्मी प्रवीर कहते हैं कि भागलपुर में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों की तुलना में प्रेक्षागृहों की कमी काफी कम है। जिसका सीधा प्रभाव कलाकारों पर पड़ा है। वे प्रश्न दागते हैं कि आखिर कब तक एक कलाकार साधनहीनता से संघर्ष करता रहेगा। बगुला मंच के रामावतार राही तो इस मसले पर काफी तल्ख दिखते हैं। वे कहते हैं कि सरकार ने आज तक हम लोगों को दिया ही क्या है। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी कि साहित्यकारों को किसी की जयंती मनाने के लिए भी किराए पर भवन लेना पड़ता है।

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