Wednesday, October 28, 2009

जीते क्या व आंसू पीते हैं गरीब

रघु, तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया है। ये ले एक रुपया। बिस्किट खा लेना, छोटे को टाफी खरीदवा देना और हां, सुन! आठ आने वापस भी ले आना। रघु की दीदी जब रघु से यह बात कहती है तो दीपप्रभा टाकीज में फिल्म देख रहे बच्चे गरीबी के इस आलम को देख सिहर उठते हैं। हाल में मौजूद सातवीं कक्षा का मनोज तपाक से कह बैठता है, आठ आने में पूरी दुकान खरीदवानी है क्या! 'कारामाती कोट' फिल्म का नाम सुनते ही लगता है कि यह जादुई दुनिया के सुनहरे सपनों पर आधारित है, परंतु वास्तव में कहानी स्लम एरिया की भीषण गरीबी को चित्रित करती है। जब रघु स्कूल जाने की बात कहता है तो उसके जीजा उसे बरसात की सर्द रात में पीट कर घर से निकाल देते हैं। एक दुकान के बाहर सोए रघु को नीले बालों वाली बुढि़या एक लाल रंग कोट ओढ़ा देती है और बाद में रघु जानता है कि इस कोट की जेब से वह जितने चाहे, एक रुपये के सिक्के निकाल सकता है। रुपयों के ढेर को देख कर रघु की खुशी में फिल्म देखने आए बच्चे भी शरीक हो जाना चाहते हैं, सो जम कर तालियां पीटते हैं। जब फिल्म की कहानी में बूट पालिश कर रहे रघु के दो दोस्तों और फूलों के गजरे बनाकर बेचने वाली छोटी सी बच्ची की दरिद्रता सामने आती है तो छठी कक्षा में पढ़ने वाली मंजरी स्कूल की तरफ से मिले बिस्किट के पैकेट को समेट कर अपने हाथ में रख लेती है, मानो वह ही उन गरीब बच्चों के हिस्से का बिस्किट खा रही हो। इन बच्चों को जब पहली बार नहाने का साबुन मिलता है तो इनकी खुशी को बयान कर पाना असंभव हो जाता है। एक ओर जहां रघु का जीजा उसे काम पर लगाना चाहता है, वहीं रघु आगे पढ़ाई करना चाहता है। जब रघु खुशबू वाला इरेजर लेकर स्कूल जाता है तो स्लम एरिया के गरीब बच्चे उसे सिर्फ एक बार सूंघने देने की खुशामद करते हैं। आगे कहानी के साथ बच्चों की खुसुर-फुसुर भी चालू हो जाती है। जब मालगाड़ी के खराब डिब्बे में रहने देने के लिए चौकीदार रघु से पचास रुपये वसूलता है तो बच्चे इस भ्रष्टाचार को सहन न कर पुलिस-प्रशासन के खिलाफ कई कड़े जुमले उछाल ही देते हैं। अंत में इसी कोट के कारण उसके जीजा और गुंडे उसके साथ जानवरों जैसा सलूक करते हैं और इन सब से आजिज आकर रघु उस कोट को समुद्र में फेंक देता है। फिल्म की कहानी चाहे जो भी हो पर बच्चों ने कहा कि उन्हें इस फिल्म से लालच से बचने की प्रेरणा मिली है। कुछ शिक्षक इस बात पर आक्रोशित दिखे कि पूरी फिल्म एक नकारात्मक संदेश छोड़ती है। फिल्म से मिलने वाले संदेश को लेकर जब बच्चों से बात की गई तो कक्षा आठ की रितु, कक्षा छह की शिवानी, कक्षा सात की आशा और कक्षा आठ की मीनू ने कहा कि हमें जीवन में कभी लालच नहीं करना चाहिए। वहीं कक्षा छह के मो. नदीम और जफर ने बताया कि यदि आप अच्छा काम करते हों तो ऊपर वाला भी आपका भला करेगा। पांचवीं कक्षा के ओंकार कुमार सिन्हा के अनुसार हमें हमेशा भलाई की ओर अग्रसर रहना चाहिए। सातवीं कक्षा की अफसाना परवीन, रुकसार और छठी कक्षा की चांदनी का कहना था कि फिल्म ने उन्हें भलाई करने की सीख दी है।

ओवरलोडिंग पर नहीं चल रहा कानून का डंडा

भागलपुर। आदमी को जानवर की तरह बस में बिठाने का नजारा सुल्तानंगज - देवघर मार्ग पर ही नहीं अमूनन यह नजारा बिहार की उन हर सड़कों पर देखने को मिलती है जिस होकर बड़े वाहनों का परिचालन होता है। मंगलवार को सुल्तानगंज - देवघर मार्ग के बछौर गांव के समीप हुई बस दुर्घटना में घायलों की तायदाद इतनी नहीं होती अगर वाहन पर निर्धारित क्षमता के अनुरूप यात्रियों को बिठाया जाता । दरअसल पैसे के लालच में वाहन चालक व खलासी यात्रियों को बस की सीट के अलावा बस के अंदर व छत पर ठूस देते हैं। हाल ही में परिवहन विभाग की ओर से एक निर्देश दिया गया थी वाहनों पर ओवरलोडिंग करने वाले बस मालिकों के साथ - साथ छत पर सवारी करने वाले यात्रियों से भी जुर्माना भी वसूला जाएगा । लेकिन इन आदेश धरातल पर नहीं उतर पाए । अधिकांश बस चालक स्टैंड किरानी के साथ मिलकर यात्रियों की जान को जोखिम में डाल सफर को संकट में डाल रहे हैं। मायागंज अस्पताल में भर्ती कई घायल बस के अंदर खड़े थे। घायलों ने बताया कि बस की निर्धारित सीट 52 थी । लेकिन बस पर करीब सौ से अधिक यात्रियों को ऊपर नीचे बिठाया गया था। पुलिस का कहना है कि ओवरलोडिंग रोकने का काम परिवहन विभाग का है। लेकिन परिवहन विभाग अपनी जिम्मेवारी का सही निर्वहन नहीं कर रहा है। सुल्तानगंज से देवघर के लिए हर दिन सुल्तानगंज बस डिपो से दर्जन से अधिक बड़ी बस खुलती है। सवारियों को बिठाने की होड़ में यात्रियों की जिंदगी का जरा भी ख्याल नहीं रखा जाता है। अगर कोई यात्री नियम कानून का हवाला देता है तो उसे या तो चालक - सह चालक से पंगेबाजी मोल लेनी पड़ती या फिर बस से उतरना पड़ता है। ऐसे में यात्री अपनी यात्रा को मंगलमय बनाने के लिए बस चालकों का जुल्म मौन रखकर बर्दाश्त करने में ही अपनी भलाई समझते है। सड़क पर हो रहे हादसों की मुख्य वजह ओवरलोडिंग भी है। वाहन मालिकों की दबंगई की आड़ में ओवरलोडिंग के बने कानून धूल फांक रहे हैं। पुलिस - प्रशासन व परिवहन विभाग सभी एक दूसरे पर दोषारोपण कर अपनी जिम्मेवारियों से बच रहे हैं और हादसों पर हादसा हो रहा है। सब कुछ जानकार भी शासन - प्रशासन मौन व खामोश है।

Saturday, October 24, 2009

GI status sought for Bhagalpur silk fabrics and sarees

A group of organisations have sought Geographical Indication (GI) status for silk fabrics and sarees produced in Bhagalpur division of Bihar.

The Bhagalpur Regional Handloom Weavers Cooperative Union and six other organisations have filed an application before the Chennai-based Geographical Indication Registry, the competent authority under Government of India, for a GI tag for 'Bhagalpur Silk Fabrics and Sarees'.
The Geographical Indication is a sign used on goods that have a specific geographical origin and possess qualities, reputation or characteristics that are essentially attributable to that region.Once granted, the GI status would legally prohibit others to sell sarees and fabrics made at places other than Bhagalpur under the same brand.The GI tag for fabrics and sarees can become an effective tool for economic empowerment of the weaver community.The Bhagalpur Regional Handloom Weavers Cooperative Union and six other organisations have filed an application before the Chennai-based Geographical Indication Registry, the competent authority under Government of India, for a GI tag for 'Bhagalpur Silk Fabrics and Sarees'.
The Geographical Indication is a sign used on goods that have a specific geographical origin and possess qualities, reputation or characteristics that are essentially attributable to that region.Once granted, the GI status would legally prohibit others to sell sarees and fabrics made at places other than Bhagalpur under the same brand.The GI tag for fabrics and sarees can become an effective tool for economic empowerment of the weaver community.

Monday, October 12, 2009

US scientists to map Ganga stretch between Kahalgaon and Patna

Scientists from the United States would work with the researchers of Tilka Manjhi Bhagalpur University (TNBU) to analyse the quality of water of river Ganga and prepare a map of riverbed through Global Positioning System (GPS).
The Inland Waterways Authority of India will lend support to the effort with a well equipped vessel to aid the research, between October 21 and 31.

जहां चलती थी रेलगाड़ी वहां अब चलती है बैलगाड़ी

भागलपुर। जी हां प्रखंड के लत्तीपुर में अब रेलगाड़ी की जगह बैलगाड़ी ने ले ली है। डेढ़ दशक पूर्व बिहपुर रेलवे स्टेशन से भाया लत्तीपुर, शंकरपुर एवं महादेवपुर तक रेलगाड़ी चला करती थी। जहां से यात्री पानी जहाज का सफर तय कर भागलपुर पहुंचते थे। पर अब ऐसा नहीं है। यहां के लोग अब बैलगाड़ी से सफर करते हैं। लत्तीपुर के नंदु यादव बताते हैं कि तब अपरिहार्य कारणों से दो बार रेल का परिचालन बंद किया गया था मगर पुन: परिचालन बहाल कर दिया था। पर तीसरी बार रेलवे ने इसकी सुध नहीं ली और परिचालन पूरी तरह ठप हो गया। अब तो बिहपुर से अरसंडी तक रेल पटरी भी हटा लिया गया। इस कारण यहां का विकास पूरी तरह ठप हो गया। परबल, खीरा व मछली व्यवसाय के लिए विख्यात लत्तीपुर गांव आज अपने सुनहरे अतीत एवं उपेक्षित वर्तमान पर आंसू बहा रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि सम्पन्न लोकसभा चुनाव से पूर्व बिहपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस रेलखंड का पुन: सर्वे कराकर रेल परिचालन बहाल करने की घोषणा की थी। पर चुनावी नतीजों के बाद घोषणा पर अमल नहीं किया जा सका। लत्तीपुर उत्तर के पूर्व मुखिया श्याम सुन्दर राय बताते हैं कि वर्तमान में यहां के लोग बैलगाड़ी से सफर कर अपना काम निपटाते हैं।