Thursday, June 24, 2010

भागलपुर जिसे कभी दुनियां ने 'प्रसिद्ध देवदास' को अपनी कलम देने वाले शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय या फिर अपनी अदाकारी और गायकी से सभी को दीवाना बना देने वाले किशोर कुमार की कर्मस्थली के रूप में जाना हो। साथ ही दादा साहब फाल्के अवार्ड विजेता अशोक कुमार 'दादा मुनि' व बीते जमाने की सुप्रसिद्ध अदाकारा देविका रानी ने भी अंग जनपद की माटी में रहकर अपने आपको जितना संवारा है, वहां किसी से भी छिपा नहीं है। अतीत के पन्नों में नाम अंकित करा चुकी इन हस्तियों की कर्मस्थली के फनकारों की निगाहें आज भी एक अदद प्रेक्षागृह की तलाश में हैं। यह बात दीगर है कि यहां दो निजी प्रेक्षागृह । लेकिन वे भी बदलते परिवेश में पीछे छूट चुके हैं। प्रेक्षागृह के अभाव में कुंठित हो रहे स्थानीय कलाकारों का दर्द साफ झलकता है।

परिधि के उदय कहते हैं कि प्रेक्षागृह नहीं होने से नई प्रतिभाएं सामने नहीं आ पाती। वे कहते हैं कि इस समस्या पर सब सरकार को कोसते हैं। लेकिन हमारा समाज भी इस मुद्दे पर कम दोषी नहीं है। एक कलाकार अपनी प्रस्तुति से संस्कृति और सभ्यता का बोध कराता है। जब हम कलाकारों की ही उपेक्षा करेंगे तो अपनी संस्कृति खुद ही नजरअंदाज हो जाएगी। महाराष्ट्र, बंगाल में कलाकारों को उचित सम्मान व पूरा मौका मिलता है। लेकिन यहां ऐसा सोचना भी गलत है।

'दिशा' के चन्द्रेश कहते हैं कि यह समस्या आज की नहीं बल्कि कई वर्षो पुरानी है। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर हम लोग करीब 12 वर्षो से संघर्षरत हैं। जनप्रतिनिधियों द्वारा कभी ध्यान नहीं देने पर चन्द्रेश कहते हैं कि सुशील मोदी, अश्रि्वनी चौबे व सैय्यद शाहनवाज हुसैन से प्रेक्षागृह बनवाने की मांग की गई। लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।

रंगकर्मी प्रवीर कहते हैं कि भागलपुर में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों की तुलना में प्रेक्षागृहों की कमी काफी कम है। जिसका सीधा प्रभाव कलाकारों पर पड़ा है। वे प्रश्न दागते हैं कि आखिर कब तक एक कलाकार साधनहीनता से संघर्ष करता रहेगा। बगुला मंच के रामावतार राही तो इस मसले पर काफी तल्ख दिखते हैं। वे कहते हैं कि सरकार ने आज तक हम लोगों को दिया ही क्या है। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी कि साहित्यकारों को किसी की जयंती मनाने के लिए भी किराए पर भवन लेना पड़ता है।

स्वाभिमानी बनें

स्वाभिमानी बनें स्वाभिमान और अभिमान दोनों समोच्चरित शब्द हैं और उनके अर्थ भी लगभग समानार्थी जैसे ही लगते हैं। लेकिन ये दोनों शब्द परस्पर एक दूसरे से भिन्न ही नहीं एकदम विपरीतार्थी हैं। स्वाभिमान आत्मगौरव, आत्मसम्मान के लिए प्रयुक्त होता है। पौरुषवाची शब्द है जो हमें जगाता है, प्रेरित करता है और हमें कर्तव्य के प्रति आगे बढ़ने के लिए ललकारता है। स्वाभिमान हमारे अपने विश्वास को जाग्रत करता है। हमारे अपने आत्मबोध को पुष्ट करता है और कितनी ही कठिन डगर हो स्वाभिमान हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। हमें जीवन मूल्यों के प्रति, अपने देश के प्रति, अपनी संस्कृति, समाज के प्रति स्वाभिमानी बनने की प्रेरणा देता है। मानव तीन ऋणों को लेकर जन्मता है। पहला-पितृ ऋण। हमारे जन्मदाता ने हमारा जो शरीर प्रदान किया है कि हम अपने ही रूप स्वरूप की संतति देकर पितृ-ऋण से मुक्त होकर स्वाभिमान पूर्वक सामाजिक संरचना के चक्र को पूरा करने में स्वाभिमान रखें। दूसरा ऋण है-सामाजिक ऋण। हम जिस समाज में हैं उस समाज को अपने कौशल और विवेक-बुद्धि से समाजसेवा करने में स्वाभिमान की पवित्र भावना रखें। हमारे ऊपर तीसरा ऋण है- राष्ट्र ऋण। हम जिस राष्ट्र में रहकर उसके अन्न-जल से पोषण प्राप्त करके अपना, अपने परिवार तथा अपने समाज के विकास में सहयोगी बनते हैं, उसके स्वराष्ट्राभिमान को जाग्रत रखना चाहिए। इस राष्ट्र पर किसी भी प्रकार की संकट आए तो राष्ट्र को संकट से मुक्त कराने के लिए अनेक राष्ट्रभक्तों ने स्वराष्ट्राभिमान के वशीभूत होकर अपने को उत्सर्ग कर दिया। ऐसा स्वाभिमान जो हमारे विवेक को प्रकाशित करता है। यह स्वाभिमान ही है जो हमें हमारी कठिन परिस्थितियों और विपन्नावस्था में भी डिगने नहीं देता। स्वाभिमान हमारी आन-बान-शान का प्रतीक होता है। जबकि अभिमान हमें अहं से ग्रसित करता है। मिथ्या ज्ञान हमें घमंड, गर्व तथा अपने को श्रेष्ठ समझकर झूठा व दंभी बनाता है, अज्ञान के अंधेरे घेरों में ढकेलता है। अभिमान मानव का, समाज का व राष्ट्र का शत्रु है। अस्तु हमें अभिमानी न बनकर स्वाभिमानी बनना चाहिए। अपने राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान रखकर इस देश को उन्नतशील बनाना और स्वयं विवेकशील बनना चाहिए।

Friday, March 19, 2010

विक्रमशिला का होगा उद्धार

एनटीपीसी लिमिटेड के नैगम सामाजिक दायित्व कार्यक्रम का संचालन करने वाली संस्था एनटीपीसी फाउंडेशन देश के ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सहयोग देगी। इस कड़ी में विक्रमशिला महाविहार का भी होगा उद्धार। देश के विभिन्न भागों में अवस्थित पावर स्टेशनों के आसपास के ऐतिहासिक व पुरातात्विक अवशेषों को संरक्षित और संव‌िर्द्धत करने की जिम्मेदारी संबंद्ध पावर स्टेशन वहन करेगा। विगत जनवरी माह में इस आशय के समझौता ज्ञापन पर एनटीपीसी फाउंडेशन और एएसआई के बीच सहमति बनी है।

शुरूआती दौर में तीन ऐतिहासिक स्थलों को चुनकर कार्य शुरू करने की योजनाओं का सार्थक परिणाम आने तक अन्य पुरातात्विक धरोहरों का चयन कर कार्यक्रम का विस्तार किया जाएगा। कहलगांव स्थित विक्रमशिला महाविहार को गोद लेने की संभावना के विषय में पूछने पर उन्होंने कहा कि संभावनाएं अनंत हैं और विक्रमशिला विवि के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसे प्राथमिकता सूची में अवश्य ही स्थान दिया जाएगा। प्रयोग के तौर पर कार्यारंभ करने और उसके फलाफल पर योजना का भविष्य निर्भर है।

Tuesday, March 16, 2010

उत्तर बिहार का हब बनेगा भागलपुर

विजय घाट पर पुल का निर्माण होते ही भागलपुर उत्तर बिहार का हब बन जाएगा। 26 मार्च को इसका टेंडर होगा। कोसी नदी पर बनने वाले इस पुल पर 257 करोड़ रुपए खर्च होंगे। पुल बनने से मधेपुरा-सुपौल सहित नवगछिया की किस्मत खुल जाएगी। इससे न केवल भागलपुर से उत्तर बिहार की दूरी कम हो जाएगी बल्कि व्यवसाय को भी फलने-फूलने का मौका मिलेगा।
भागलपुर के विकास के लिए इस पुल का निर्माण जरूरी है। राजनीतिक कारणों से इसे उपेक्षित कर दिया गया है। जमालपुर सुरंग की हालत भी खराब हो चुकी है। इसका विकल्प रेलवे को तलाशना चाहिए। अगर समय रहते रेलवे द्वारा सुरक्षात्मक उपाय नहीं ढूंढा गया तो कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है।

Monday, March 15, 2010

विक्रमशिला व बटेश्वर के दृश्य से बढ़ी महोत्सव की भव्यता

विक्रमशिला महोत्सव मंच पर पहली बार विक्रमशिला व बटेश्वर स्थान के दृश्य बनाए गए हैं। लग रहा है कि सचमुच विक्रमशिला का मंच है। मंच पर विक्रमशिला महाविहार के मुख्य स्तूप, निकले अवशेषों, बटेश्वर स्थान विक्रमशिला के आचार्य अतिश दीपांकर, भगवान बुद्ध, मां तारा, तांत्रिक यंत्र, मंजुषा कला आदि का चित्र बना कर प्रतिमा स्थापित की गई है। इस बार मंच को कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय ललित अकादमी के अध्यक्ष प्रो. विरेन्द्र नारायण सिंह ने सजाया है।

Sunday, March 14, 2010

फिर से ज्ञान का केन्द्र बनेगा बिहार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार फिर से ज्ञान का केन्द्र बनेगा। जरूरत है धरोहरों को संजोकर रखा जाए और पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने कहा कि वैशाली, बोधगया, राजगीर व नालंदा की तर्ज पर विक्रमशिला को भी विकसित किया जाएगा।

शनिवार को विक्रमशिला बौद्ध महाविहार में दीप प्रज्जवलित कर मुख्यमंत्री ने विधिवत तीन दिवसीय विक्रमशिला महोत्सव का उद्घाटन किया। उद्घाटन के बाद समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार इतना आगे बढ़ेगा कि लोग दांतों तले ऊंगलियां दबाएंगे। फिलहाल राज्य का विकास दर 11 प्रतिशत है और इसे 15 प्रतिशत तक पहुंचा दिया जाएगा। उन्होंने 2015 तक बिहार को विकसित राज्य बनाने का संकल्प लिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि विक्रमशिला का गौरवशाली इतिहास रहा है। विक्रमशिला के बारे में लोगों को जो जानकारी है वह पूरी नहीं है। अभी पूरी तरह से इसकी खुदाई नहीं हुई है। खुदाई के बाद विक्रमशिला के बारे में और अधिक जानकारी मिल सकती है।

उन्होंने कहा कि विक्रमशिला में एक संबृद्ध संग्रहालय बनना चाहिए। साथ ही यहां पर्यटकों को अधिक से अधिक सुविधाएं मिले। इसके लिए कला संस्कृति विभाग द्वारा सारी तैयारी की जा रही है। इन सारे प्रस्तावों को भारत सरकार के पास रखा जाएगा। जमीन अधिग्रहित कर विक्रमशिला को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की योजना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले बिहार में पर्यटक आना नहीं चाहते थे। अब हर साल चार लाख विदेशी और एक करोड़ देशी पर्यटक यहां आते हैं। राज्य की आर्थिक स्थिति तब मजबूत होगी जब यहां पर्यटक आएंगे और खर्च करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा बिहार बनेगा जिससे 15 दिनों तक पर्यटक यहां खो जाएंगे।

Saturday, March 13, 2010

CESC to move Pirpainti power project closer to Bihar capital

RPG flagship company CESC Ltd on Thursday said it has decided to move its proposed power project at Pirpainti (near Bhagalpur) closer to the Bihar capital – Patliputra after running into land acquisition problems.

While CESC had initially earmarked Pirpainti for its 2,000 MW power generation plant in the state, it has now decided to move the project closer to Patliputra after running into land acquisition problems. But it is yet to confirm the exact location for the proposed project.

“Since we are looking at the Patliputra (Patna) distribution circle, it makes sense to move the project closer to the city. The plant will definitely be somewhere in northern Bihar,” a spokesperson said.

The Kolkata-based company, in July last year, had unveiled its plan to set up a 2,000 MW power generation plant at Pirpainti by opening a new power company, Nalanda Power Company – a 100 percent subsidiary of CESC.

CESC has also applied for coal mining rights for sourcing the required coal for this coal-fired merchant thermal power unit, said vice-chairman of the company Sanjiv Goenka.

CESC intends on adding 5,000 MW of thermal generation capacity over the next few years, with investments in the range of Rs 20,000 crore, by establishing five new facilities across the country. Of these, it has already commenced work at the projects in Haldia (West Bengal) and Chandrapur (Maharashtra), while the other three thermal generation units each in Bihar, Jharkhand and Orissa will become operational only by 2013.

The company has been allotted captives mines in the Dumka, Jharkhand.

“Our group plans to add 5,000 MW of thermal generating capacity. We are looking at opportunities for inorganic growth as well. Thanks to our internal accruals, and room to tap both equity and debt options, funds are not a problem,” Goenka said on Thursday.

Friday, March 12, 2010

विक्रमशिला विश्वविद्यालय को लेकर सरकार गंभीर पहल नहीं कर रही

इतिहासकार पंचानन मिश्र का कहना है कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय को लेकर सरकार गंभीर पहल नहीं कर रही है। जिस तर्ज पर नालंदा को विकसित करने के लिए सरकार कोशिश कर रही है, उसकी तुलना में अभी विक्रमशिला विश्वविद्यालय के लिए ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यदि सरकार विक्रमशिला स्थल को विकसित करने के लिए सचमुच में प्रयास करना चाहती तो फिर यहां पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने के लिए कदम उठाना चाहिए। किंतु सरकार यहां केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने के बजाए मोतीहारी में खोलने के लिए पहल कर रही है। हालांकि पता चला है कि वहां पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने के लिए केन्द्र राजी नहीं है।

श्री मिश्र के मुताबिक, नालंदा विश्वविद्यालय में एक द्वार का पता चला है जबकि विक्रमशिला में छह द्वार थे। द्वार की संख्या छह होने का तात्पर्य है कि यहां पर छह विषयों की पढ़ाई होती थी जिनमें केवल तंत्र विद्या ही नहीं बल्कि फीजिक्स, केमिस्ट्री, क्रिएटिव रिलीजन, कल्चर आदि शामिल थे। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में लगभग दस हजार विद्यार्थियों की पढ़ाई होती थी और उनके लिए करीब एक सौ आचार्य पढ़ाने का काम करते थे। गौतम बुद्ध स्वयं यहा आए थे और यही से गंगा नदी पार कर सहरसा की ओर गए थे।

श्री मिश्र के मुताबिक, ऐसा कोई प्रमाण सामने नहीं आया है कि नालंदा से कोई स्कालर यहां आकर पढ़ाने का शुरू किया। बेशक यहां से तिब्बत के राजा के अनुरोध पर दिपांकर अतीश तिब्बत गए और उन्होंने तिब्बत से बौद्ध भिक्षुओं को चीन, जापान, मलेशिया, थाइलैंड से लेकर अफगानिस्तान तक भेजकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। विक्रमशिला के बारे में सबसे पहले राहुल सांस्कृत्यायन ने सुल्तानगंज के करीब होने का अंदेशा प्रकट किया था। उसका मुख्य कारण था कि अंग्रेजों के जमाने में सुल्तानगंज के निकट एक गांव में बुद्ध की प्रतिमा मिली थी। बावजूद उसके अंग्रेजों ने विक्रमशिला के बारे में पता लगाने का प्रयास नहीं किया। इसके चलते विक्रमशिला की खुदाई पुरातत्व विभाग द्वारा 1986 के आसपास शुरू हुआ। खुदाई कार्यो की देखरेख में लगे बी.एस.वर्मा ने बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई और अधिकांश मूर्तियां यहां से उठाकर पटना ले गए और वहीं जमा कर दिए। आज तक उसकी रिपोर्ट यहां नहीं है। ऐसी स्थिति में वर्तमान सरकार द्वारा महोत्सव कराया जाना महज एक राजनीतिक प्रपंच है। इससे कोई दीर्घकालिक परिणाम निकलने वाला है।

स्वर्ण अक्षरों में अंकित है अंग का सम्बृद्ध इतिहास

'भोंसला' की चढ़ाई अंग प्रांत में बराबर होती थी और सर्वसाधारण को अपनी रक्षा के लिए भागने का स्थान खोजना पड़ता था, जिससे इसका नाम भागलपुर पड़ा! ऐसे ही कई कहानियों और मिथकों से भागलपुर के नाम को स्थापित करने का प्रयास तो किया गया है लेकिन 'भागलपुर' नाम की सृष्टि कब और कैसे हुई, इस तथ्य को इतिहास के पन्नों में स्थापित नहीं किया जा सका है।
'भागलपुर दर्पण' में झारखंडी झा ने भी सुनी-सुनाई बातों से भागलपुर के नाम को स्थापित करने का प्रयास किया है। इस पुस्तक के अनुसार मुसलमानी राज्य के समय भागे हुए कैदियों को यहां सख्त सजा दी जाती थी, इस कारण भागलपुर नाम पड़ा। दूसरा तथ्य, वृद्ध सज्जन लोग यह कहते हैं कि डाकुओं के उपद्रव से लोग भागकर तथा यहां से गंगा पार जाकर अपनी जान बचाते थे। एक अन्य तथ्य प्राचीन काल में भगलू नामक प्रख्यात पुरूष का संबंध भी इस नगर से था और कालांतर में इसका नाम इनसे जुड़कर भागलपुर पड़ गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के पुराने कागज पत्रों में इसका नाम 'वोगलीपुर' मिलता है। जो भी हो इतना तो तय है कि आज का भागलपुर प्राचीन अंग की राजधानी और सम्प्रति उसके मुख्य नगर का प्रतिनिधित्व करता है। गंगा और चम्पा के संगम पर बसी 'चम्पा' अंग की राजधानी थी। 'अंग और अंगिका' नामक आलेख में डा.माहेश्वरी सिंह महेश लिखते हैं-'आज चंपा ही नहीं, अंग भी भागलपुर है।'
अंग का नाम सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है। टामस वाटर का यान-चांग की भारत यात्रा के माध्यम से हुवेनसंग अंग नगरी के पौराणिक होने की पुष्टि करते हैं। इसमें वर्णित कथा के मुताबिक, मनुष्य गृहहीन जंगली थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। उसने गंगा में स्नान किया और गर्भवती हो गई। उसके चार पुत्र हुए, जिन्होंने संसार को चार भागों में विभाजित कर अपनी-अपनी नगरी बसाई। प्रथम नगरी का नाम चंपा था..।' वाल्मिकी रामायण (1/23/14-56)के अनुसार मदन(कामदेव) शिव के आश्रम से शिव के क्रोध से भस्मीभूत होने के डर से भागा और उसने जहां अपने शरीर का त्याग किया, उसे अंग कहा जाने लगा। महाभारत और पुराणों के अनुसार बली के क्षेत्रज पुत्रों ने अपने नाम से राज्य बसाया था। चंद्रवंशी ययाति के पौत्र तितिक्षु ने प्राच्य में आण्व राज्य की स्थापना की।
मालिनी, चम्पा, चंपापुरी, लोम्पादुपू और कर्णपू आदि कई नाम आज के भागलपुर के निकटस्थ चंपा के अतीत में रह चुके हैं। अंग की राजधानी चंपा थी। चंपा की नींव राजा चंप ने कलि संवत 1061 में डाली, इसका प्राचीन नाम मालिनी था। राजा चंप महान पराक्रमी राजा लोमपाद के प्रपौत्र थे। एक कथा के अनुसार राजा लोमपाद महान धनुर्धर थे और अपने समकालीन अयोध्या के राजा दशरथ के परम मित्र थे। परंतु राजा लोमपाद संतानहीन थे। अस्तु उन्होंने अपने अभिन्न मित्र राजा दशरथ की पुत्री शांता को गोद लिया। इसी शांता का विवाह ऋषि ऋंगि से हुआ। ऋषि ऋंगि ने लोमपाद के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया, जिससे लोमपाद को चतुरंग या तरंग नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। चतुरंग या तरंग को पृथुलाक्ष नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और पृथुलाक्ष के पुत्र हुए चम्प, जिन्होंने चंपा नगरी बसाई।
चंप के वंश में ही आगे चलकर राजा अधिरथ हुए। राजा अधिरथ ने ही कुमारी कुन्ती द्वारा गंगा में प्रवाहित कर्ण का पालन-पोषण किया और बाद में कुरुराज से अपनी मित्रता को कायम रखकर उसका अभूतपूर्व आदर्श विश्व में उपस्थित किया। इसका अवशेष भागलपुर के पश्चिम चंपानगर या कर्णगढ़ में आज भी वर्त्तमान है। गंगा तट पर बसने के कारण यह नगर वाणिज्य का केन्द्र हो गया और बुद्ध की मृत्यु के समय यह भारत के छह प्रमुख नगरों में से एक था। इस नगर का ऐश्वर्य बढ़ता गया और यहां के व्यापारी सुवर्णभूमि तक इस बन्दरगाह की नावों पर जाते थे। इस नगर के वासियों ने हिंद-चीन प्रायद्वीप में अपने नाम का एक उपनिवेश बसाया।
पालवंश के उदय के साथ विक्रमशिला में बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तब अंग का गौरव एक बार पुन: जाग उठा। इस बार का गौरव शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता का था। यही समय था, जब चीन तक अंग की ख्याति फैल गई थी। राहुल सांस्कृत्यायन ने अपने तिब्बत में सवा बरस के पृष्ट संख्या 18 में लिखा है मुगल काल में शोषण और उत्पीड़न के उस काल में भी अंग का महत्व कम नहीं हुआ। शाहजहां के पुत्र शाहशुजा को भागलपुर इतना प्यारा लगा कि उसने शुजागंज या शुजानगर ही बसा दिया। आज सूजागंज भागलपुर शहर का मुख्य व्यापारिक केन्द्र है।
जैनियों के बारहवें तीर्थकर भगवान वसूपूज्य ने यहीं जन्म लिया, ज्ञान प्राप्त किया और निर्वाण को प्राप्त हुए। इस भूमि को चौबीसवें तीर्थकर जैन महावीर की प्रथम शिष्या चंदन बाला की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। जैन धर्मावलंबी इसे चंपापुरी के नाम से पुकारते हैं। बौद्धकाल में चंपा उत्तर भारत के महा जनपदों में एक थी। भगवान बुद्ध के मौदगल्य जैसे शिष्य तथा विशाखा जैसी शिष्या यहीं की धूली में लोटकर बड़े हुए। चक्रवर्ती सम्राट अशोक की मां सुभद्रांगी का जन्म यहीं इस चंपा के एक गरीब ब्राह्माण परिवार में हुआ था। चांद सौदागर के पुत्र बाला लखेन्द्र और पुत्रबधु महासती बिहुला की कथा इसी माटी की उपज है। आज भी चंपानगर विषहरी पूजा का केन्द्र स्थल है। यह इस अंगभूमि का दुर्भाग्य ही है कि इसकी गौरवशाली अतीत आज उपेक्षित होकर विस्मृति के गर्भ में समाता चला जा रहा है। डा. एसएम राफिक 'ज़मां' के अनुसार-'भागलपुर न केवल रूहानियत का शहर बल्कि अध्यात्म का नगर भी है। इसके चप्पे-चप्पे पर खुदा के नेक बंदे आराम फरमा रहे हैं, जिन्हें दुनिया सूफी, बुजुर्ग, औलिया ए किराम, दुर्वेश, फकीर, पीर इत्यादि नामों से पुकारती है। यही वे पवित्र हस्तियां हैं, जिन्होंने प्यार का पैगाम फैलाया। भागलपुर की खुशनसीबी है कि इसके लगभग सभी मुहल्लों में वलियों, दर्वेशों, फकीरों के आशियाने दिखाई देते हैं। भागलपुर की यह विशेषता है कि इसके अधिकतर मुहल्लों के नाम ऐसी ही पाक हस्तियों के नाम पर रखे गए हैं, जो आज से नहीं सदियों से सरकारी रिकार्ड में अंकित है।'
अंग्रेजी शासन काल में भागलपुर शोषण और दोहन के बाद के बाद भी विदेशी शासन के विरुद्ध लोहा लेता रहा।