Friday, March 12, 2010

स्वर्ण अक्षरों में अंकित है अंग का सम्बृद्ध इतिहास

'भोंसला' की चढ़ाई अंग प्रांत में बराबर होती थी और सर्वसाधारण को अपनी रक्षा के लिए भागने का स्थान खोजना पड़ता था, जिससे इसका नाम भागलपुर पड़ा! ऐसे ही कई कहानियों और मिथकों से भागलपुर के नाम को स्थापित करने का प्रयास तो किया गया है लेकिन 'भागलपुर' नाम की सृष्टि कब और कैसे हुई, इस तथ्य को इतिहास के पन्नों में स्थापित नहीं किया जा सका है।
'भागलपुर दर्पण' में झारखंडी झा ने भी सुनी-सुनाई बातों से भागलपुर के नाम को स्थापित करने का प्रयास किया है। इस पुस्तक के अनुसार मुसलमानी राज्य के समय भागे हुए कैदियों को यहां सख्त सजा दी जाती थी, इस कारण भागलपुर नाम पड़ा। दूसरा तथ्य, वृद्ध सज्जन लोग यह कहते हैं कि डाकुओं के उपद्रव से लोग भागकर तथा यहां से गंगा पार जाकर अपनी जान बचाते थे। एक अन्य तथ्य प्राचीन काल में भगलू नामक प्रख्यात पुरूष का संबंध भी इस नगर से था और कालांतर में इसका नाम इनसे जुड़कर भागलपुर पड़ गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के पुराने कागज पत्रों में इसका नाम 'वोगलीपुर' मिलता है। जो भी हो इतना तो तय है कि आज का भागलपुर प्राचीन अंग की राजधानी और सम्प्रति उसके मुख्य नगर का प्रतिनिधित्व करता है। गंगा और चम्पा के संगम पर बसी 'चम्पा' अंग की राजधानी थी। 'अंग और अंगिका' नामक आलेख में डा.माहेश्वरी सिंह महेश लिखते हैं-'आज चंपा ही नहीं, अंग भी भागलपुर है।'
अंग का नाम सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है। टामस वाटर का यान-चांग की भारत यात्रा के माध्यम से हुवेनसंग अंग नगरी के पौराणिक होने की पुष्टि करते हैं। इसमें वर्णित कथा के मुताबिक, मनुष्य गृहहीन जंगली थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। उसने गंगा में स्नान किया और गर्भवती हो गई। उसके चार पुत्र हुए, जिन्होंने संसार को चार भागों में विभाजित कर अपनी-अपनी नगरी बसाई। प्रथम नगरी का नाम चंपा था..।' वाल्मिकी रामायण (1/23/14-56)के अनुसार मदन(कामदेव) शिव के आश्रम से शिव के क्रोध से भस्मीभूत होने के डर से भागा और उसने जहां अपने शरीर का त्याग किया, उसे अंग कहा जाने लगा। महाभारत और पुराणों के अनुसार बली के क्षेत्रज पुत्रों ने अपने नाम से राज्य बसाया था। चंद्रवंशी ययाति के पौत्र तितिक्षु ने प्राच्य में आण्व राज्य की स्थापना की।
मालिनी, चम्पा, चंपापुरी, लोम्पादुपू और कर्णपू आदि कई नाम आज के भागलपुर के निकटस्थ चंपा के अतीत में रह चुके हैं। अंग की राजधानी चंपा थी। चंपा की नींव राजा चंप ने कलि संवत 1061 में डाली, इसका प्राचीन नाम मालिनी था। राजा चंप महान पराक्रमी राजा लोमपाद के प्रपौत्र थे। एक कथा के अनुसार राजा लोमपाद महान धनुर्धर थे और अपने समकालीन अयोध्या के राजा दशरथ के परम मित्र थे। परंतु राजा लोमपाद संतानहीन थे। अस्तु उन्होंने अपने अभिन्न मित्र राजा दशरथ की पुत्री शांता को गोद लिया। इसी शांता का विवाह ऋषि ऋंगि से हुआ। ऋषि ऋंगि ने लोमपाद के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया, जिससे लोमपाद को चतुरंग या तरंग नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। चतुरंग या तरंग को पृथुलाक्ष नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और पृथुलाक्ष के पुत्र हुए चम्प, जिन्होंने चंपा नगरी बसाई।
चंप के वंश में ही आगे चलकर राजा अधिरथ हुए। राजा अधिरथ ने ही कुमारी कुन्ती द्वारा गंगा में प्रवाहित कर्ण का पालन-पोषण किया और बाद में कुरुराज से अपनी मित्रता को कायम रखकर उसका अभूतपूर्व आदर्श विश्व में उपस्थित किया। इसका अवशेष भागलपुर के पश्चिम चंपानगर या कर्णगढ़ में आज भी वर्त्तमान है। गंगा तट पर बसने के कारण यह नगर वाणिज्य का केन्द्र हो गया और बुद्ध की मृत्यु के समय यह भारत के छह प्रमुख नगरों में से एक था। इस नगर का ऐश्वर्य बढ़ता गया और यहां के व्यापारी सुवर्णभूमि तक इस बन्दरगाह की नावों पर जाते थे। इस नगर के वासियों ने हिंद-चीन प्रायद्वीप में अपने नाम का एक उपनिवेश बसाया।
पालवंश के उदय के साथ विक्रमशिला में बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तब अंग का गौरव एक बार पुन: जाग उठा। इस बार का गौरव शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता का था। यही समय था, जब चीन तक अंग की ख्याति फैल गई थी। राहुल सांस्कृत्यायन ने अपने तिब्बत में सवा बरस के पृष्ट संख्या 18 में लिखा है मुगल काल में शोषण और उत्पीड़न के उस काल में भी अंग का महत्व कम नहीं हुआ। शाहजहां के पुत्र शाहशुजा को भागलपुर इतना प्यारा लगा कि उसने शुजागंज या शुजानगर ही बसा दिया। आज सूजागंज भागलपुर शहर का मुख्य व्यापारिक केन्द्र है।
जैनियों के बारहवें तीर्थकर भगवान वसूपूज्य ने यहीं जन्म लिया, ज्ञान प्राप्त किया और निर्वाण को प्राप्त हुए। इस भूमि को चौबीसवें तीर्थकर जैन महावीर की प्रथम शिष्या चंदन बाला की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। जैन धर्मावलंबी इसे चंपापुरी के नाम से पुकारते हैं। बौद्धकाल में चंपा उत्तर भारत के महा जनपदों में एक थी। भगवान बुद्ध के मौदगल्य जैसे शिष्य तथा विशाखा जैसी शिष्या यहीं की धूली में लोटकर बड़े हुए। चक्रवर्ती सम्राट अशोक की मां सुभद्रांगी का जन्म यहीं इस चंपा के एक गरीब ब्राह्माण परिवार में हुआ था। चांद सौदागर के पुत्र बाला लखेन्द्र और पुत्रबधु महासती बिहुला की कथा इसी माटी की उपज है। आज भी चंपानगर विषहरी पूजा का केन्द्र स्थल है। यह इस अंगभूमि का दुर्भाग्य ही है कि इसकी गौरवशाली अतीत आज उपेक्षित होकर विस्मृति के गर्भ में समाता चला जा रहा है। डा. एसएम राफिक 'ज़मां' के अनुसार-'भागलपुर न केवल रूहानियत का शहर बल्कि अध्यात्म का नगर भी है। इसके चप्पे-चप्पे पर खुदा के नेक बंदे आराम फरमा रहे हैं, जिन्हें दुनिया सूफी, बुजुर्ग, औलिया ए किराम, दुर्वेश, फकीर, पीर इत्यादि नामों से पुकारती है। यही वे पवित्र हस्तियां हैं, जिन्होंने प्यार का पैगाम फैलाया। भागलपुर की खुशनसीबी है कि इसके लगभग सभी मुहल्लों में वलियों, दर्वेशों, फकीरों के आशियाने दिखाई देते हैं। भागलपुर की यह विशेषता है कि इसके अधिकतर मुहल्लों के नाम ऐसी ही पाक हस्तियों के नाम पर रखे गए हैं, जो आज से नहीं सदियों से सरकारी रिकार्ड में अंकित है।'
अंग्रेजी शासन काल में भागलपुर शोषण और दोहन के बाद के बाद भी विदेशी शासन के विरुद्ध लोहा लेता रहा।

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